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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2789
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- नैतिक विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक कौन-से हैं? विस्तार पूर्वक समझाइये?

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. नैतिक विकास पद विद्यालय का प्रभाव।

उत्तर -

नैतिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक
(Factors Influencing Moral Development)

जैसा कि हम पूर्व में पढ़ चुके हैं नैतिक विकास रातों-रात नहीं होता है वरन् उसे सीखना पड़ता है। इसके विकास में कई वातावरणीय कारकों का भी अति महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। तो आइये जानें कि नैतिक विकास को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक कौन-कौन से हैं? यहाँ नैतिक विकास को प्रभावित करने वाले कारकों का संक्षिप्त विवरण दिया जा रहा है-

(1) बुद्धि (Intelligence ) - बालकों के नैतिक विकास को प्रभावित करने वाला एक अति महत्वपूर्ण कारक है "बुद्धि" । बुद्धि में वह शक्ति होती है, वह सामर्थ्य होता है जो उचित-अनुचित, अच्छा-बुरा, सत्य-झूठ के बीच अंतर करना सिखाता है। बौद्धिक क्षमता के आधार पर बालक उचित - अनुचित के बीच भेद करना सीख जाता है। वह नैतिक मूल्यों को समझता है और उसे अपने जीवन में अपनाता है। कुशाग्र बुद्धि के बालक नैतिक मूल्यों एवं आचरणों को अपने जीवन में शीघ्रता से अपना लेता है। वहीं मंद बुद्धि के बालकों को नैतिक मूल्यों को सिखाने में अधिक सयम लगता है। साथ ही यदि उनमें, एक बार अवांछनीय आचरणों का विकास हो जाता है तो वह उसका परित्याग आसानी से नहीं कर पाता है। इसके ठीक विपरीत सामान्य बुद्धि व कुशाग्र बुद्धि के बालक अवांछनीय आदतों का परित्याग आसानी से कर देते हैं। अध्ययनों से यह ज्ञात हुआ है कि प्रतिभाशाली बालकों का व्यवहार मंदबुद्धि वाले बालकों की तुलना में अधिक सुखद, सुन्दर व आनंददायी होता है। वे सामाजिक मान्यताओं को ध्यान में रखते हुए सुन्दर आचरण करते हैं। कुशाग्र बुद्धि के बालक अपने आदर्श मार्ग से बहुत ही कम विचलित होते हैं।

(2) आयु (Age) - बुद्धि की भाँति ही " आयु" (Age) का भी नैतिक विकास में अहम् योगदान है। छोटे बच्चे नैतिक-अनैतिक में भेद नहीं कर पाते हैं। इसका प्रमुख कारण उनकी बौद्धिक क्षमता का अल्प विकास होना है। उनकी मस्तिष्क की कोशिकाएँ व तंत्रिका तंत्र इतना परिपक्व नहीं होता है कि वे नैतिक मूल्यों को समझ सकें और उन्हें याद कर सकें। इस अवस्था के बालक वहीं कार्य करते हैं, जिनसे उन्हें असीम आनंद की प्राप्ति होती है। इसका दूसरा मुख्य कारण नैतिक विकास का शनैः शनैः विकास होना भी है। आयु बढ़ने के साथ-साथ बालकों के सोचने-समझने, तर्क करने, विचार करने की क्षमता में वृद्धि होती है और वे उचित-अनुचित, सही-गलत, झूठ-सच आदि के बारे में समझने लग जाते हैं। सहयोग, सहनशीलता, ईमानदारी, कर्त्तव्यनिष्ठा, मित्रता, सहिष्णुता, परोपकार की भावना आदि का विकास उम्र बढ़ने के साथ-साथ ही होता है।

छोटे बालक जब विद्यालय में पढ़ाये गये पाठों को याद नहीं कर पाते हैं अथवा Home work पूरा नहीं कर पाते हैं तो वे शिक्षक की डाँट फटकार से बचने के लिए तुरंत ही झूठ बोल देते परन्तु वही बालक बड़े होने पर झूठ कम ही बोलते हैं। अब वे उन्हीं जगहों पर झूठ बोलते हैं जहाँ ऐसा महसूस होता है कि 'झूठ बोलना जरूरी है।'

(3) लिंग (Sex) - नैतिकता के विकास में 'लिंग' (Sex) का भी अति महत्वपूर्ण स्थान है। यद्यपि जन्म के समय लड़के-लड़की की नैतिकता में कोई अंतर नहीं होता है। दोनों ही नैतिक मूल्यों से अनभिज्ञ होते हैं। परन्तु जैसे-जैसे वे बड़े होते जाते हैं, उनके माता-पिता एवं शिक्षक उन्हें नैतिक मूल्यों एवं आचरणों के बारे में बताते हैं। लड़कियाँ जन्म से ही अधिक शर्मीली एवं लज्जाशील प्रकृति की होती हैं। इस कारण उनमें नैतिक मूल्यों का विकास लड़कों की तुलना में अधिक होता है। इसका प्रमुख कारण अंत: स्रावी ग्रंथियाँ (Endocrine glands) तथा उनसे स्रावित होने वाले हारमोनों की भिन्नता है। एन्ड्रोजन (Androgen) हारमोन लड़कों में उपस्थित होता है जो लड़कियों में नहीं पाया जाता है। शायद इसी हारमोन के कारण लड़के-लड़कियों की तुलना में अधिक चंचल, उद्दंड, उच्छृंखल एवं दुराचारी होते हैं।

(4) परिवार (Family) - बालकों के नैतिक विकास को प्रभावित करने वाले कारणों में से एक अति महत्वपूर्ण कारक है 'परिवार' । परिवार में ही पल - बढ़कर शिक्षा-दीक्षा पाकर बालक नैतिक आचरणों को सीखता है। बालक अपने माता-पिता तथा परिवार के सदस्यों के व्यवहार एवं आचरणों का ही अनुकरण करते हैं। उनके माता-पिता जिस तरह का व्यवहार करते हैं बालक भी उन्हीं की तरह व्यवहार करता है। उनका बोलचाल का ढंग भी माता-पिता से काफी हद तक मिलता-जुलता है। यदि घर में माता-पिता एवं परिवार के सदस्यों का व्यवहार अच्छा है, वे नैतिक आचरणों से सुशोभित हैं । उचित - अनुचित में भेद करना जानते हैं, तो निश्चित ही बालकों में भी इन्हीं गुणों का विकास होगा। क्योंकि नैतिक गुणों से विभूषित माता-पिता अपने बालकों को सच बोलने की शिक्षा देते हैं।

फलतः बालक में बाल्यावस्था से ही नैतिक मूल्यों का विकास होता है। इसके ठीक विपरीत यदि माता-पिता एवं परिवार के सदस्य ही झूठ बोलते हैं, चोरी करते हैं, दूसरों को परेशान करते हैं, शराबी, जुआरी, बेश्यागामी, गंजेड़ी (गांजा पीने वाला), भंगेड़ी ( भांग खाने वाला) हैं, चरस एवं नारकोटिक्स का सेवन करते हैं, तो निश्चित ही बालक में उन्हीं अवगुणों का ही समावेश होगा। ऐसे परिवार में पले-बढ़े बालकों में झूठ बोलने की बहुत अधिक आदत पायी जाती है।

(5) विद्यालय ( School) – बालकों के नैतिक विकास में परिवार के बाद 'विद्यालय' का भी अति महत्वपूर्ण स्थान है । विद्यालय वह स्थान होता है, जहाँ बालकों के सुन्दर भविष्य का निर्माण होता है। विद्यालय के शिक्षक, सहपाठी, पाठ्यक्रम, विद्यालय का अनुशासन, खेल-क्रियाएँ आदि नैतिकता के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। विद्यालय के अन्तर्गत निम्न बिन्दुओं पर संक्षिप्त प्रकाश डाला जा रहा है-

(i) शिक्षक (Teacher ) - बालकों के लिए वे शिक्षक आदर्श (Ideals) होते हैं जो समय पर कक्षाओं को लेते हैं। कर्तव्यनिष्ठ एवं ईमानदार होते हैं। बालक अपने शिक्षक की बात जितनी सहजता से आँख मूँदकर मान लेता है उतना वह किसी की बात नहीं मानता। बालक निरंतर शिक्षकों के व्यक्तित्व, ज्ञान, आचरण एवं व्यवहारों से प्रभावित होते रहते हैं। अच्छे शीलगुणों से परिपूरित शिक्षकों को विद्यार्थी बहुत अधिक पसंद करते हैं। और उन्हें अपना आदर्श मानकर उन्हीं की तरह बनना चाहते हैं। इसलिए यह जरूरी है कि विद्यालय में शिक्षक का व्यवहार एवं आचरण अच्छा हो। वे मृदुभाषी एवं बालकों से प्रेम करने वाले हों ताकि बालक उनके चरित्र को अपने जीवन में उतार सकें।

(ii) विद्यालय का पाठ्यक्रम (Syllabus) - बालकों के नैतिक विकास में विद्यालय के पाठ्यक्रम का भी अति महत्वपूर्ण स्थान है। विद्यालय का पाठ्यक्रम ऐसा होना चाहिए जो बालकों को चरित्रवान बनने में सहायक हो। इसलिए वर्तमान में, नैतिक शिक्षा (Moral Education) को भी सम्मिलित किया गया है।

(iii) विद्यालय के साथी (School's Mate ) - विद्यालय में बालक अपने कक्षा के साथियों के साथ ही दूसरे कक्षा के विद्यार्थियों से भी मिलता-जुलता है, उनके साथ रहता है, खेलता है व अन्य कार्य करता है। यदि विद्यालय के साथी अच्छे आचरण करने वाले होते हैं, पढ़ाई में भी अव्वल होते हैं तो बालक में भी इन्हीं गुणों का विकास होता है। इसके विपरीत यदि विद्यालय के साथी घमंडी, स्वार्थी, दुराचारी और आवारा किस्म के हैं तो बालक में भी इन्हीं गुणों का विकास होगा। बालक के चरित्र में गिरावट आती है। बालक दुराचारी प्रवृत्ति का बन जाता है। फलतः उसका भविष्य अंधकारमय हो जाता है।

(iv) विद्यालय का अनुशासन (Discipline in school ) - बालकों के नैतिक विकास में अनुशासन का अति महत्वपूर्ण स्थान है। जिस विद्यालय की व्यवस्था एवं अनुशासन ठीक रहता है, बालकों को स्वच्छ, सुन्दर, मधुरं व स्वस्थ वातावरण मिलता है। वैसे स्कूलों में पढ़कर बालक स्वतः ही अनुशासित हो जाते हैं। परन्तु जिन विद्यालयों में अनुशासन नहीं है अथवा बहुत ही कम है, वहाँ बालक उदंड, उच्छृंखल एवं निर्भीक हो जाते हैं। वे शिक्षक की आज्ञा की अवहेलना करते हैं, क्योंकि उन्हें किसी भी प्रकार का डर-भय नहीं रहता है। वे कई प्रकार के अवांछनीय एवं निंदनीय कार्य कर बैठते हैं। अतः बालकों को अनुशासनहीन विद्यालय में पढ़ने हेतु नहीं भेजना चाहिए।

(6) मनोरंजन (Recreation) - नैतिक मूल्यों के विकास में मनोरंजन की प्रमुख भूमिका है। बालकों को यदि स्वस्थ मनोरंजन की सुविधा प्रदान की जाए तो उनमें नैतिक आचरणों का सुन्दर ढंग से विकास होता है। मनोरंजन के अनेक साधन हैं, जैसे- टी० वी०, रेडियो, सिनेमा, पार्टी में जाना, पुस्तकें पढ़ना, नोवेल पढ़ना, कॉमिक्स पढ़ना आदि। अश्लील एवं गंदे गाने सुनने, गंदे फिल्म देखने, गंदी पुस्तकें पढ़ने से बालकों में अनैतिक आचरणों का विकास होता है। सिनेमा एवं कम्प्यूटर का बालमन पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है, इसलिए बालकों को मारपीट, लड़ाई-झगड़ा, अनाचार, कामुकता वाली फिल्मों को कभी नहीं दिखाना चाहिए। उन्हें ऐसी फिल्म दिखाना चाहिए जो नैतिक मूल्यों से परिपूरित हो। इसी प्रकार धार्मिक पुस्तकें पढ़ने, महापुरुषों की जीवनियों को पढ़ने से बालकों में नैतिकता का विकास होता है।

(7) साथी समूह (Peer Group ) - बालक के साथी समूह का आचरण जिस तरह का होता है, बालक में भी वैसे ही व्यवहारों, आदर्शों, मूल्यों व आचरणों का विकास होता है। अतः यह अत्यावश्यक है कि बालक के संगी-साथी का आचरण सुन्दर हो । बालक जितना अपने माता-पिता, परिवार के सदस्यों एवं शिक्षकों से सीखते हैं, उससे कहीं अधिक वे अपने संगी-साथियों से सीखते हैं। बालक खेल-खेल में ही सच बोलना, चोरी न करना, बदतमीजी न करना आदि गुणों को सीख जाता है। यदि बालक के साथी चोरी करने वाले, झूठ बोलने वाले, फरेबी, लड़ाई-झगड़ा एवं मारपीट करने वाले, नकबजनी आदि होते हैं तो बालक भी इन अवगुणों को सीख जाता है। अतः स्पष्ट है कि बालक का नैतिक आचरण उसके संगी-साथियों व मित्रों से भी प्रभावित होता है।

(8) पड़ोस (Neighourhood ) - न केवल माता-पिता, संगी-साथी एवं शिक्षकों का आचरण व व्यवहार ही बालक के नैतिक विकास को महत्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करते हैं, बल्कि पड़ोसी के नैतिक मूल्यों व व्यवहारों का भी अति महत्वपूर्ण स्थान है। पास-पड़ोस के व्यक्ति का आचरण एवं व्यवहार जिस प्रकार का होता है, बालक में भी इन्हीं गुणों का विकास होता है। यदि पड़ोस में रहने वाले व्यक्ति चरित्रवान नहीं हैं, वे अशिक्षित हैं, झगड़ालू, शराबी, जुआरी व वेश्यागामी हैं तथा सदैव ही अनेतिक आचरणों में लिप्त रहने वाले हैं तो बालक में शनैः-शनैः इन्हीं गुणों का विकास हो जाएगा। अतः बालक भी आगे चलकर अनैतिक आचरण करने वाला ही बन जाता है। इसके ठीक विपरीत यदि पास-पड़ोस के व्यक्ति सभ्य हैं, सुसंस्कृत हैं, शिक्षित हैं, तो निश्चित ही उनमें अच्छे गुणों का विकास होगा।

(9) जनमाध्यम (Mass Media ) - वर्तमान में, किशोरों में जो इतना अधिक व्यभिचार व दुराचार बढ़ा है और वे कामुकता की ओर अग्रसर हुए हैं उनमें जन माध्यमों की भी विशिष्ट भूमिका रही है। आजकल की फिल्म भी अश्लीलता से भरी होती हैं। टी० वी० में भी विभिन्न चैनलों में जो दृश्य या सीरियल दिखाये जाते हैं वे वास्तविक जीवन से काफी दूर, कोरी कल्पना से भरे होते हैं। उनमें भी अश्लीलता एवं फूहड़पन का ही अधिक पुट रहता है। हीरोइनों के तंग वस्त्र होते हैं जिनमें से कामुकता एवं उच्छृंखलता हिलोरें लेते नजर आती हैं। गाने के बोल भी फूहड़ एवं कामुक होते हैं जो अल्प वयस्क किशोरों में कामुकता को बढ़ाने में “आग में घी की तरह" काम करते हैं। फलतः किशोरों में यौन इच्छा की पूर्ति हेतु बलात्कार की भावना प्रबल हो जाती है। इतना ही नहीं, अर्द्धनग्न हीरोइनों के फोटो सार्वजनिक स्थानों एवं दीवारों पर चिपकाये जाते हैं जो किसी भी दृष्टि से बालकों के नैतिक विकास में सहायक नहीं होते हैं। अतः टी० वी० पर ऐसे फिल्म या सीरियल दिखाये जाने चाहिए जिन्हें बालक अपने माता-पिता के साथ बैठकर देख सकें। अतः सीरियल एवं फिल्म शिक्षाप्रद होनी चाहिए जिससे बालकों का नैतिक विकास हो। इसी प्रकार धार्मिक पुस्तकें, वैज्ञानिकों एवं महापुरुषों की जीवनियाँ, जहाँ एक ओर बालकों के चरित्र विकास में सहायक सिद्ध होती हैं, वहीं काल्पनिक कहानियाँ, जासूसी उपन्यास, अश्लील साहित्य किशोर बालक-बालिकाओं को पथ भ्रष्ट कर उन्हें विनाश के गर्त में ढकेल देते हैं।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- मानव विकास को परिभाषित करते हुए इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- विकास सम्प्रत्यय की व्याख्या कीजिए तथा इसके मुख्य नियमों को समझाइए।
  3. प्रश्न- मानव विकास के सम्बन्ध में अनुदैर्ध्य उपागम का वर्णन कीजिए तथा इसकी उपयोगिता व सीमायें बताइये।
  4. प्रश्न- मानव विकास के सम्बन्ध में प्रतिनिध्यात्मक उपागम का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  5. प्रश्न- मानव विकास के सम्बन्ध में निरीक्षण विधि का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  6. प्रश्न- व्यक्तित्व इतिहास विधि के गुण व सीमाओं को लिखिए।
  7. प्रश्न- मानव विकास में मनोविज्ञान की भूमिका की विवेचना कीजिए।
  8. प्रश्न- मानव विकास क्या है?
  9. प्रश्न- मानव विकास की विभिन्न अवस्थाएँ बताइये।
  10. प्रश्न- मानव विकास को प्रभावित करने वाले तत्वों का वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- मानव विकास के अध्ययन की व्यक्ति इतिहास विधि का वर्णन कीजिए
  12. प्रश्न- विकासात्मक अध्ययनों में वैयक्तिक अध्ययन विधि के महत्व पर प्रकाश डालिए?
  13. प्रश्न- चरित्र-लेखन विधि (Biographic method) पर प्रकाश डालिए ।
  14. प्रश्न- मानव विकास के सम्बन्ध में सीक्वेंशियल उपागम की व्याख्या कीजिए ।
  15. प्रश्न- प्रारम्भिक बाल्यावस्था के विकासात्मक संकृत्य पर टिप्पणी लिखिये।
  16. प्रश्न- गर्भकालीन विकास की विभिन्न अवस्थाएँ कौन-सी है ? समझाइए ।
  17. प्रश्न- गर्भकालीन विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक कौन-से है। विस्तार में समझाइए।
  18. प्रश्न- नवजात शिशु अथवा 'नियोनेट' की संवेदनशीलता का उल्लेख कीजिए।
  19. प्रश्न- क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते है ? क्रियात्मक विकास का महत्व बताइये ।
  20. प्रश्न- क्रियात्मक विकास की विशेषताओं पर टिप्पणी कीजिए।
  21. प्रश्न- क्रियात्मक विकास का अर्थ एवं बालक के जीवन में इसका महत्व बताइये ।
  22. प्रश्न- संक्षेप में बताइये क्रियात्मक विकास का जीवन में क्या महत्व है ?
  23. प्रश्न- क्रियात्मक विकास को प्रभावित करने वाले तत्व कौन-कौन से है ?
  24. प्रश्न- क्रियात्मक विकास को परिभाषित कीजिए।
  25. प्रश्न- प्रसवपूर्व देखभाल के क्या उद्देश्य हैं ?
  26. प्रश्न- प्रसवपूर्व विकास क्यों महत्वपूर्ण है ?
  27. प्रश्न- प्रसवपूर्व विकास को प्रभावित करने वाले कारक कौन से हैं ?
  28. प्रश्न- प्रसवपूर्व देखभाल की कमी का क्या कारण हो सकता है ?
  29. प्रश्न- प्रसवपूर्ण देखभाल बच्चे के पूर्ण अवधि तक पहुँचने के परिणाम को कैसे प्रभावित करती है ?
  30. प्रश्न- प्रसवपूर्ण जाँच के क्या लाभ हैं ?
  31. प्रश्न- विकास को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन हैं ?
  32. प्रश्न- नवजात शिशु की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो।
  33. प्रश्न- शैशवावस्था में (0 से 2 वर्ष तक) शारीरिक विकास एवं क्रियात्मक विकास के मध्य अन्तर्सम्बन्धों की चर्चा कीजिए।
  34. प्रश्न- नवजात शिशु की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- शैशवावस्था में बालक में सामाजिक विकास किस प्रकार होता है?
  36. प्रश्न- शिशु के भाषा विकास की विभिन्न अवस्थाओं की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  37. प्रश्न- शैशवावस्था क्या है?
  38. प्रश्न- शैशवावस्था में संवेगात्मक विकास क्या है?
  39. प्रश्न- शैशवावस्था की विशेषताएँ क्या हैं?
  40. प्रश्न- शिशुकाल में शारीरिक विकास किस प्रकार होता है?
  41. प्रश्न- शैशवावस्था में सामाजिक विकास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखो।
  42. प्रश्न- सामाजिक विकास से आप क्या समझते है ?
  43. प्रश्न- सामाजिक विकास की अवस्थाएँ कौन-कौन सी हैं ?
  44. प्रश्न- संवेग क्या है? बालकों के संवेगों का महत्व बताइये ।
  45. प्रश्न- बालकों के संवेगों की विशेषताएँ बताइये।
  46. प्रश्न- बालकों के संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं? समझाइये |
  47. प्रश्न- संवेगात्मक विकास को समझाइए ।
  48. प्रश्न- बाल्यावस्था के कुछ प्रमुख संवेगों का वर्णन कीजिए।
  49. प्रश्न- बालकों के जीवन में नैतिक विकास का महत्व क्या है? समझाइये |
  50. प्रश्न- नैतिक विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक कौन-से हैं? विस्तार पूर्वक समझाइये?
  51. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  52. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास क्या है? बाल्यावस्था में संज्ञानात्मक विकास किस प्रकार होता है?
  53. प्रश्न- बाल्यावस्था क्या है?
  54. प्रश्न- बाल्यावस्था की विशेषताएं बताइयें ।
  55. प्रश्न- बाल्यकाल में शारीरिक विकास किस प्रकार होता है?
  56. प्रश्न- सामाजिक विकास की विशेषताएँ बताइये।
  57. प्रश्न- संवेगात्मक विकास क्या है?
  58. प्रश्न- संवेग की क्या विशेषताएँ होती है?
  59. प्रश्न- बाल्यावस्था में संवेगात्मक विकास की विशेषताएँ क्या है?
  60. प्रश्न- कोहलबर्ग के नैतिक सिद्धान्त की आलोचना कीजिये।
  61. प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में बच्चे अपने क्रोध का प्रदर्शन किस प्रकार करते हैं?
  62. प्रश्न- बालक के संज्ञानात्मक विकास से आप क्या समझते हैं?
  63. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास की विशेषताएँ क्या हैं?
  64. प्रश्न- किशोरावस्था की परिभाषा देते हुये उसकी अवस्थाएँ लिखिए।
  65. प्रश्न- किशोरावस्था में यौन शिक्षा पर एक निबन्ध लिखिये।
  66. प्रश्न- किशोरावस्था की प्रमुख समस्याओं पर प्रकाश डालिये।
  67. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास से आप क्या समझते हैं? किशोरावस्था में संज्ञानात्मक विकास किस प्रकार होता है एवं किशोरावस्था में संज्ञानात्मक विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों का उल्लेख कीजिए?
  68. प्रश्न- किशोरावस्था में संवेगात्मक विकास का वर्णन कीजिए।
  69. प्रश्न- नैतिक विकास से आप क्या समझते हैं? किशोरावस्था के दौरान नैतिक विकास की विवेचना कीजिए।
  70. प्रश्न- किशोरवस्था में पहचान विकास से आप क्या समझते हैं?
  71. प्रश्न- किशोरावस्था को तनाव या तूफान की अवस्था क्यों कहा गया है?
  72. प्रश्न- अनुशासन युवाओं के लिए क्यों आवश्यक होता है?
  73. प्रश्न- किशोरावस्था से क्या आशय है?
  74. प्रश्न- किशोरावस्था में परिवर्तन से सम्बन्धित सिद्धान्त कौन-से हैं?
  75. प्रश्न- किशोरावस्था की प्रमुख सामाजिक समस्याएँ लिखिए।
  76. प्रश्न- आत्म विकास में भूमिका अर्जन की क्या भूमिका है?
  77. प्रश्न- स्व-विकास की कोई दो विधियाँ लिखिए।
  78. प्रश्न- किशोरावस्था में पहचान विकास क्या हैं?
  79. प्रश्न- किशोरावस्था पहचान विकास के लिए एक महत्वपूर्ण समय क्यों है ?
  80. प्रश्न- पहचान विकास इतना महत्वपूर्ण क्यों है?
  81. प्रश्न- एक किशोर के लिए संज्ञानात्मक विकास का क्या महत्व है?
  82. प्रश्न- प्रौढ़ावस्था से आप क्या समझते हैं? प्रौढ़ावस्था में विकासात्मक कार्यों का वर्णन कीजिए।
  83. प्रश्न- वैवाहिक समायोजन से क्या तात्पर्य है ? विवाह के पश्चात् स्त्री एवं पुरुष को कौन-कौन से मुख्य समायोजन करने पड़ते हैं ?
  84. प्रश्न- एक वयस्क के कैरियर उपलब्धि की प्रक्रिया और इसमें शामिल विभिन्न समायोजन को किस प्रकार व्याख्यायित किया जा सकता है?
  85. प्रश्न- जीवन शैली क्या है? एक वयस्क की जीवन शैली की विविधताओं का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- 'अभिभावकत्व' से क्या आशय है?
  87. प्रश्न- अन्तरपीढ़ी सम्बन्ध क्या है?
  88. प्रश्न- विविधता क्या है ?
  89. प्रश्न- स्वास्थ्य मनोविज्ञान में जीवन शैली क्या है?
  90. प्रश्न- लाइफस्टाइल साइकोलॉजी क्या है ?
  91. प्रश्न- कैरियर नियोजन से आप क्या समझते हैं?
  92. प्रश्न- युवावस्था का मतलब क्या है?
  93. प्रश्न- कैरियर विकास से क्या ताप्पर्य है ?
  94. प्रश्न- मध्यावस्था से आपका क्या अभिप्राय है ? इसकी विभिन्न विशेषताएँ बताइए।
  95. प्रश्न- रजोनिवृत्ति क्या है ? इसका स्वास्थ्य पर प्रभाव एवं बीमारियों के संबंध में व्याख्या कीजिए।
  96. प्रश्न- मध्य वयस्कता के दौरान होने बाले संज्ञानात्मक विकास को किस प्रकार परिभाषित करेंगे?
  97. प्रश्न- मध्यावस्था से क्या तात्पर्य है ? मध्यावस्था में व्यवसायिक समायोजन को प्रभावित करने वाले कारकों पर प्रकाश डालिए।
  98. प्रश्न- मिडलाइफ क्राइसिस क्या है ? इसके विभिन्न लक्षणों की व्याख्या कीजिए।
  99. प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था में स्वास्थ्य पर टिप्पणी लिखिए।
  100. प्रश्न- स्वास्थ्य के सामान्य नियम बताइये ।
  101. प्रश्न- मध्य वयस्कता के कारक क्या हैं ?
  102. प्रश्न- मध्य वयस्कता के दौरान कौन-सा संज्ञानात्मक विकास होता है ?
  103. प्रश्न- मध्य वयस्कता में किस भाव का सबसे अधिक ह्रास होता है ?
  104. प्रश्न- मध्यवयस्कता में व्यक्ति की बुद्धि का क्या होता है?
  105. प्रश्न- मध्य प्रौढ़ावस्था को आप किस प्रकार से परिभाषित करेंगे?
  106. प्रश्न- प्रौढ़ावस्था के मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष के आधार पर दी गई अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।
  107. प्रश्न- मध्यावस्था की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  108. प्रश्न- क्या मध्य वयस्कता के दौरान मानसिक क्षमता कम हो जाती है ?
  109. प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था (50-60) वर्ष में मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक समायोजन पर संक्षेप में प्रकाश डालिये।
  110. प्रश्न- उत्तर व्यस्कावस्था में कौन-कौन से परिवर्तन होते हैं तथा इन परिवर्तनों के परिणामस्वरूप कौन-कौन सी रुकावटें आती हैं?
  111. प्रश्न- पूर्व प्रौढ़ावस्था की प्रमुख विशेषताओं के बारे में लिखिये ।
  112. प्रश्न- वृद्धावस्था में नाड़ी सम्बन्धी योग्यता, मानसिक योग्यता एवं रुचियों के विभिन्न परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
  113. प्रश्न- सेवा निवृत्ति के लिए योजना बनाना क्यों आवश्यक है ? इसके परिणामों की चर्चा कीजिए।
  114. प्रश्न- वृद्धावस्था की विशेषताएँ लिखिए।
  115. प्रश्न- वृद्धावस्था से क्या आशय है ? संक्षेप में लिखिए।
  116. प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था (50-60 वर्ष) में हृदय रोग की समस्याओं का विवेचन कीजिए।
  117. प्रश्न- वृद्धावस्था में समायोजन को प्रभावित करने वाले कारकों को विस्तार से समझाइए ।
  118. प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था में स्वास्थ्य पर टिप्पणी लिखिए।
  119. प्रश्न- स्वास्थ्य के सामान्य नियम बताइये ।
  120. प्रश्न- रक्तचाप' पर टिप्पणी लिखिए।
  121. प्रश्न- आत्म अवधारणा की विशेषताएँ क्या हैं ?
  122. प्रश्न- उत्तर प्रौढ़ावस्था के कुशल-क्षेम पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  123. प्रश्न- संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  124. प्रश्न- जीवन प्रत्याशा से आप क्या समझते हैं ?
  125. प्रश्न- अन्तरपीढ़ी सम्बन्ध क्या है?
  126. प्रश्न- वृद्धावस्था में रचनात्मक समायोजन पर टिप्पणी लिखिए।
  127. प्रश्न- अन्तर पीढी सम्बन्धों में तनाव के कारण बताओ।

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